Wednesday, December 30, 2009

भड़काती हैं राखी









तस्वीरें देखने के लिए होती हैं। देखने वालों का नजरिया अलग होता है। राखी सावंत की तस्वीरें भड़काऊ कही जा सकती हैं। मल्लिका भी भड़काती हैं। रानी मुखर्जी को देखकर अच्छा लगता है। ऐश को लुक लुभाता है। फिर भी देखी सभी जाती हैं।

Tuesday, December 29, 2009

६० साल के जवान

वाह रे नारायण दत्त तिवारी जी। यदि चैनल की बात सही है तो आपने कमाल कर दिया। बुढ़ापे में भी धमाल कर दिया। जवानी में भी इतना जोश कम ही लोगों को होता है। आपने तो साबित किया है की ६० साल के बाद भी जवानी आती है। आप भी जवान हो गए हैं। देश की राजनीती को आपने क्या दिया ये तो जनता जाने। लेकिन समाज को आपने दिखाया की पत्नी की असमय मौत ने आपको कितना रसिया बना दिया। आपका रसीला रूप समाज के घातक तो नहीं ही होगा। क्योंकि देश दिशा बहुत जल्द बदल जाती है।

Tuesday, November 3, 2009

करीना का प्यार

करीना कपूर ने शाहिद कपूर को क्यों छोड़ा। सैफ अली खान से गलबहियां किए क्यों घूम रही हैं। क्या शाहिद ने अभी तक किसी से प्यार किया। क्या करीना सच में सैफ से प्यार करती हैं। क्या सैफ सही मायने में करीना को दिल दे बैठे हैं। इन सवालों के जवाब तब तक पूछे जाते रहेंगे, जब तक करीना और सैफ की शादी नहीं हो जाती। करीना शाहिद के साथ रात-रात भर अकेली घूम चुकी हैं। सैफ तो अमृता के साथ शादी करके बच्चे पैदा कर चुके हैं। करीना ने शाहिद को छोड़ दिया।

सैफ ने अमृता से नाता तोड़ लिया। यह सबको पता है कि सैफ ने अमृता से प्रेम विवाह किया था। उसी तरह करीना और शाहिद आपस में प्यार ही करते थे। करीना कपूर खानदान की चिराग हैं। सैफ पटौदी घराने के वारिस हैं। लेकिन, प्यार के मामले में दोनों ने धोखा दिया। क्योंकि, करीना से शाहिद अब भी प्यार करने की बात करते हैं। अमृता भी सैफ को छोड़ने के बाद किसी के साथ घूमना पसंद नहीं किया। असल मे सैफ को लग रहा है कि उनके हाथ खूबसूरती का खजाना लगा है। जबकि, करीना को लगता है कि सैफ बांके करारे जवान और अनुभवी मर्द हैं। करीना को यह पता है कि सैफ के पास पैसा भी खूब है।


जबकि, शाहिद कपूर को कम से कम बच्चे पैदा करने का अनुभव तो नहीं है। वे जवां मर्द की दिखते भी नहीं है। उनके चेहरे से मर्दानगी की जगह मासूमियत टपकटती है। वे छैल छबीले बन भी नहीं सकते। उनके पास पैसा भी सैफ की तुलना में कम है। असल में शाहिद इमोशनल हैं। उन्होंने करीना को सच्चे दिल से प्यार किया। ऎसा उनके हाव भाव देखने से अंदाजा लगाया जा सकता है। वे करीना की आंखों में खोना चाहते थे। वे करीना की सेक्स अपील से मतलब नहीं रखते थे। शायद यहीं पर वे गच्चा खा गए। करीना बिंदास हैं। वे प्रोफेशनल हैं।


उनको पता है कि शादी के बाद बॉलीवुड में कोई पूछने वाला नहीं है। यही करिश्मा और अभिषेक के साथ हुआ था। हालांकि, करिश्मा भी अभिषेक से शादी करना चाहती थीं। लेकिन, उनकी मां बबिता कपूर ने ऎहसास कराया कि जितना पैसा संजय के पास है, उतनी हैसियत अभिषेक की नहीं है। इसी के चलते करिश्मा ने अभिषेक को छोड़ दिया। बबिता ने बॉलीवुड में बहुत कुछ हासिल करने का सपना देखा था। वे पैसा भी खूब कमाना चाहती थीं। लेकिन, कपूर खानदान की मर्यादाओं में उनकी चल नहीं पाई। जब बेटियां जवान हुई तो उन्हें खुली छूट दे दी। पिता रणधीर कपूर सीधे हैं। सिर्फ वेट एंड वॉच पर हैं।

Sunday, November 1, 2009

दुष्यंत की याद में

संचार मंत्रालय ने गीतकार दुष्यंत कुमार पर डाक टिकट जारी किया है। यह सुनना मीठा लग सकता है। लेकिन, कड़वी बात यह रही कि मंत्रालय ने इसे बेहद गोपनीय रखा। फिर भी सुखदायक है कि दुष्यंत जैसे लोग भी सरकारी महकमे को याद आ जाते हैं। नहीं तो किसी को फुरसत कहां है। भ्रष्टाचार के ज्वालामुखी पर खड़ा देश कहां जाएगा, इसका अंदाजा लगाना आसान नहीं है। लेकिन, यह तय है कि दुष्यंत जैसों की यादें रोमांचित करती रहेंगी। कुछ करने का जज्बा देती रहेंगी। शायद अच्छा बनने की राह भी दिखाती रहेंगी। संभव है सरकारी महकमा भी कुछ सुधर जाए। नहीं भी सुधरेगा तो क्या हुआ। देश तो चलता रहा है। आगे भी चलता रहेगा।

दुष्यंत की पंक्तियां जवानी में ज्यादा अच्छी लगती हैं। जवानी सपनों की दुनिया में रहती है। इसीलिए सबकुछ रूमानी लगता है। दुष्यंत कुमार स्कूल या साहित्यिक मत के हिमायती नहीं थे। वे एक ऎसी कविता शैली की तलाश कर रहे थे जो स्वाभाविक हो। काव्य के प्रति उनके इसी दृष्टिकोण ने उनमें सामान्य जीवन के यथार्थ के प्रति विश्वास पैदा किया। 70 के दशक के में दुष्यंत ने गजल को नई जिंदगी दी। दिल को छूने वाली सामाजिक सच्चाइयों को सामने रखा। उनकी शैली ने लोगों पर जादू किया। वे खूब पढ़े गए। पढ़े जा रहे हैं। आगे भी उनके दीवाने कम नहीं होंगे। उनका संग्रह साये में धूप ने तो धमाल ही कर दिया। उनका दर्द हर शब्दों में बयां होता था।॥यहां दरख्तों के साये में धूप लगती है, चलो यहां से चलें और उम्रभर के लिए। वे क्रांतिकारी भी थे। संवेदनशील भी। मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही, हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए।


उनकी ये पंक्तियां भी रोमांचित जरूर करती हैं


सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं, मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।मत कहो आकाश में कोहरा घना है, यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है।दोस्तों, अब मंच पर सुविधा नहीं है, आजकल नैपथ्य में संभावना है। यह पहाड़ी पांव क्या चढ़ते, इरादों ने चढ़ी है, कल दरीचे ही बनेंगे द्वार, अब तो पथ यही है।एक चिनगारी कहीं से ढूंढ लाओ दोस्तों, इस दीये में तेल से भीगी हुई बाती तो है।अब तो इस तालाब का पानी बदल दो, ये कंमल के फूल कुम्हलाने लगे हैं।ये सारा जिस्म झुककर बोझ से दुहरा हुआ होगा, मैं सजदे में नहीं था आपको धोखा हुआ होगा।पक गई हैं आदतें बातों से सर होंगी नहीं, कोई हंगामा करो ऎसे गुजर होगी नहीं। यह लड़ाई, जो कि अपने आपसे मैंने लड़ी है, यह घुटन, यह यातना, केवल किताबों में पढ़ी है।कहां तो तय था चिरागां हर एक घर के लिए, कहां चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए।गिड़गिड़ाने का यहां कोई असर होता नहीं, पेट भरकर गालियां दो, आह भरकर बद्दुआ।

Tuesday, August 11, 2009

राखी की खूबसूरती

राखी सावंत जवान हैं। खूबसूरत शायद नहीं हैं। वे खुद भी कहती हैं कि मैं तो सेक्सी हूं। सेक्सी होने और खूबसूरत होने का अंतर शायद जवानी में ही पता चलता है। लेकिन, खूबसूरती की परिभाषा राखी शायद समझ भी नहीं सकती। उन्हें समझाया भी नहीं जा सकता। जो खूबसूरत होते हैं। उन्हें बताने की जरूरत नहीं होती। वे भीड़ में अलग ही दिखते हैं। राखी का चेहरा ऎसा है कि न तो वे लड़की लगती हैं। न ही वे महिलाओं जैसी नजर आती हैं। अच्छी प्रेमिका के गुण तो उनमें झलकते नहीं। अच्छी बीवी बनना वे कब सीखेंगी, पता नहीं।
हम उनकी बुराई नहीं कर रहे। हम तो दिल की कह रहे हैं। राखी यदि खूबसूरत हैं तो गायत्री देवी कैसी थीं। राखी यदि सेक्सी हैं तो नरगिस कैसी थीं।लेकिन, राखी को कहना पड़ता है कि वे सेक्सी हैं। सेक्सी अपील उनके किस अंग में हैं। इसके लिए भी उन्हें अंग प्रदर्शन करना पड़ता है। बोलती तो राखी बिंदास ही है। इसी लिए वे अपने को बिंदास बाला भी कहलवाना पसंद करती हैं। अभिषेक अवस्थी से प्यार करती थीं। उनके साथ रहती भी थीं।

अब एनआरआई इलेस के साथ शादी की चर्च चल रही है। बिन ब्याही मां बनने की भी बात हो रही है। लेकिन, उनकी खूबसूरती और सेक्स अपील अभी न जाने कितने को दीवाना बनाएगी। कहने का मतलब यह है कि राखी सेक्स अपील और खूबसूरती को सरे बाजार बेचना जानती हैं। खरीदने वाले इतने ज्यादा हैं कि मोल तो लग ही जाता है। मोल लगाने वाले भी निराश नहीं होते। राखी बाजार को जानती हैं। बाजार राखी को जानता है। दोनों एक दूसरे को बेवकूफ समझ रहे हैं। बेवकूफ बना भी रहे हैं।

Thursday, August 6, 2009

इंडिया में प्लेब्वॉय

वयस्कों की मशहूर पत्रिका प्लेब्वॉय के चहेते खुश हो सकते हैं। इसको बेचने वाले अब भारत में अपना बड़ा बाजार बनाना चाहते हैं। पत्रिका समूह इस ब्रांड के जूते चप्पल और अन्य सामान भी बेचेंगे। उम्मीद की जा सकती है कि प्लेब्वॉय ब्रांड भारत में खूब हिट होगा। जवानी दीवानी की कहावत कहीं और सही हो या न हो, भारत में तो खरी उतरती है।
यहां छुप—छुप कर जवानी की बारात जैसी फिल्में खूब देखी जाती हैं। ऎसे में नंग धडंग तस्वीरें छाप कर प्लेब्वॉय वाले यहां खूब नाम कमा सकते हैं।यह जरूर है कि प्लेब्वॉय से भी ज्यादा बोल्ड तस्वीरें भारत के पत्र पत्रिकाओं में छपती रही हैं। लेकिन, प्लब्वॉय का आकर्षण यहां के लोगों को ज्यादा खींचेगा। इसका मुख्यालय शिकागो में है। भारत में पुरूषों के लिए इत्र बेचने की शुरूआत तो इसने कर दी है। महिलाओं से जुड़े उत्पाद भी आने में देर नहीं लगने वाली। सवाल यह है कि भारत में इस तरह के ब्रांड को हिट कराने के लिए किसका सहारा लिया जाएगा।

पामेला एंडरसन जैसी सेक्स अपील किसमें खोजेंगे।अब भारतीय समाज में सीता, पार्वती की तस्वीरें कमरों में सजारे का जमाना रहा नहीं। या तो सचिन दिखेंगे या फिर मैडोना। सानिया मिर्जा दिखेगी या फिर एंजेलिना जोली। किसी भी देश का समाज तेजी से भागता है तो वह दूसरे देश की नकल करता है। इस चक्कर में उसे अपने में कमी दिखती है। सामने वाले में सबकुछ अच्छा ही झलकता है। कहने का मतलब यह नहीं है कि बदलाव गलत है। असल मुद्दा यह है कि अंधी दौड़ का बदलाव पीछे ही धकेलता है।

Sunday, August 2, 2009

राणा चंद्र सिंह

पाकिस्तान में शाही शानो-शौकत के प्रतीक अमरकोट राजवंश के राजा राणा चंद्र सिंह सोढ़ा ने दुनिया को अलविदा कह दिया। 79 साल तक शाही जिंदगी जी। पाकिस्तान में हिंदुओं का परचम बुलंद करने की कोशिश करते रहे। लेकिन, 2004 में लकवा का शिकार हुएद्ध फिर भी शाही अंदाज बरकरार रहा। अब देखना है कि चंद्र के बाद उनके बड़े बेटे हमीर सिंह विरासत को किस तरह संभलते हैं।


राणा चंद्र सिंह के निधन से पाकिस्तान का पूरा हिंदू समाज शोक ग्रस्त हुआ होगा। राजनीतिक बंधन मजबूरी हो सकती है। लेकिन, हिंदू बहुल जिलों अमरकोट, मीरपुर खास और मिट्ठी में कारोबार बंद रखे गए। इससे उनकी लोकप्रियता का अंदाजा हो जाता है। उन्होंने शानौ शौकत की जिंदगी जीने के बाद भी आम लोगों को अपने से जोड़े रखना जरूरी समझा।चंद्र सिंह का जन्म सिंध के अमरकोट के गांव राणा जागीर में 1930 में हुआ। वहीं शुरूआती पढ़ाई की।


इसके बाद भारत के देहरादून से स्नातक की डिग्री ली। 24 साल की उम्र में ही पाकिस्तान की राजनीति में आ गए। शायद राजनीति में आना उनकी मजबूरी थी। रसूख बनाए रखने के लिए राजनीति पाकिस्तान में भी रजवाड़ों के लिए जरूरी हो गई है।राणा चंद्र सिंह की शादी बीकानेर के राजा रावत तेज सिंह की पुत्री सुभद्रा कुमारी से हुई। सुभद्रा की बहन भारत के पूर्व प्रधानमंत्री वी।पी. सिंह की पत्नी थीं। पाकिस्तान के राजनीतिक गलियारों में राणा चंद्र सिंह का खासा रसूख रहा। वे लगातार आठ बार संसद के सदस्य बने। कई बार केंद्रीय मंत्री भी रहे।


सिंध की राजनीति में उनका खास स्थान और प्रभाव था। वे पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो करीबी मित्र थे। चंद्र सिंह का नाम उस समय चर्चा में आए जब वे उस तत्कालीन प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का हिस्सा बने। 1990 के चुनाव में उन्होंने राष्ट्रीय एसेंबली की सीट से जीत हासिल की। नवाज शरीफ की सरकार का समर्थन किया। चंद्र सिंह ने कभी भारत और पाकिस्तान की कूटनीति में टांग नहीं अड़ाई। वे वहां रहे। अपना रसूख कायम करने की कोशिश करते रहे।

Sunday, July 12, 2009

जमाना होंठ छूने का नहीं

जमाने के साथ फिल्मी दुनिया भी तेजी से बदली है। हीरो-हीरोइनों के प्रेम दृश्य दिखाने के लिए अब फूल पत्तों का सहारा नहीं लिया जाता। किसिंग सीन ऎसे दिखा दिए जाते हैं, जैसे दोनों असल जिंदगी के पति पत्नी हों और सुहागरात मनाने की तैयारी कर रहे हैं। 1933 में फिल्म कर्मा का प्रदर्शन हुआ था। उसमें देविका रानी ने अपने असल पति हिमांशु राय को गर्मजोशी से चूमा था। लेकिन, मल्लिका शेरावत ने मर्डर में इमरान हाशमी को ऎसे चूमा मानो वे चूमने के लिए ही पैदा हुई हैं।

मल्लिका के चुंबनों ने युवाओं की नसों में उबाल लाने का काम किया। अब तो युवा दर्शक शायद भूलते ही जा रहे हैं कि होठ नाजुक भी होते हैं। हां गुनगुनाते जरूर हैं कि छू लेने दो नाजुक होंठों को...। नाजुक एहसास तो छूने से होता है। काटने से तो सनसनी ही पैदा होगी। फिर भी युवा पीढ़ी इसे बुरा नहीं मानती। उसे लगता है कि जो हो वह खुल्लम खुल्ला हो।


लुकाछिपी में हमारे देश की जनसंख्या अरब के पार हो गई। हर कोई ओपन माइंडेड हो जाएगा तो शायद सबकुछ होने के बाद भी जनसंख्या न बढ़े। वैसे भी आंखों ही आंखों में रात बिताने का जमाना शायद ही रहा हो। आंखों में देखने के बाद आखिर कब तक कोई अपने पर काबू कर पाएगा। काबू में नहीं ही होना है तो ब्रह्मचारी बनने का नाटक क्यों किया जाए। जवानी आती है। चली जाती है। जवानी को हरदम के लिए तो अपने पास रख नहीं सकते।

Wednesday, July 8, 2009

बच्चे पैदा करना ही काम नही

भारत जैसे देश में जनसंख्या नियंत्रण के पीछे का एक कारण वर्तमान पीढ़ी की बदलती सोच भी है। कुछ मामलों में तो यह पीढ़ी समाज के हिसाब से चलती है। लेकिन, बाप बनने के मामले में राय एकदम अलग है। वह जमाना अब नहीं रहा, जब सामाजिक बाध्यताओं के चलते बच्चों की संख्या बढ़ती जाती थी। अब लोग यह सोचते हैं कि कितने बच्चों की परवरिश अच्छे ढंग से हो पाएगी। यदि परवरिश करने लायक नहीं हैं, तो फिर पिता बनने की जरूरत खत्म हो जाती है।

पिता बनने का सुख तो आज की भी पीढ़ी चाहती है। लेकिन, इसके लिए वह जीवनसाथी पर किसी तरह का दबाव बनाना चाहती। न ही कैरियर दांव पर लगाने के बारे में सोचती है।कुछ ऎसा ही सामाजिकता के बारे में कह सकते हैं। पैसा कमाने की भूख तो लोगों में बढ़ती गई है। शायद यह समय की मांग भी है। क्योंकि, अब जरूरतें बदल गई हैं, बढ़ भी गई हैं। फिर भी समाज की परिकल्पना में विश्वास रखने वाले खुश हैं। उन्हें सुकून इस बात का है कि आज भी लोग खुद को समाज की नजर में इज्जतार बनाए रखना चाहते हैं।

यह बात भी सामने आ चुकी है कि अधिकांश लोग सफल पति और पिता बनना चाहते हैं।यह भी सच है कि आज युवा मनमर्जी की जिंदगी जीना चाहता है। खूब पैसा कमाना चाहता ह। जिंदगी में किसी तरह का बंधन पसंद नहीं करता। पीढियों से चले आ रहे संस्कार उन्हें अच्छे नहीं लगते। समाज को ठेंगे पर रखते हैं। लेकिन, जैसे ही शादी के बंधन में बंधते हैं। सोच में कई तरह के बदलाव आ जाते हैं। उन्हें इस बात की चिंता कहीं न कहीं से जरूर होने लगती है कि समाज वाले क्या कहेंगे। पैसे कमाने के साथ ही यह सोच भी बनती है कि पति और पिता की जिम्मेदारी कैसे निभाई जाए।

ऎसे में कहा जा सकता है कि पिता और पति की जिम्मेदारी का गहरा एहसास समाज की मान्यताओं से निकलता है। यह जरूर कह सकते हैं कि मान्यताओं को खारिज करने वाले भी बढ़ रहे हैं। लेकिन, ऎसे लोगों की संख्या कम है। आने वाले समय में भी इसमें बहुत ज्यादा बदलाव के संकेत नहीं दिख रहे। क्योंकि, दुनिया के अधिकांश देशो में सामाजिक बदलाव घूम—फिरकर फिर से पुराने ढर्रे पर चलने लगता है। कम बातें ही ऎसी होती हैं, जो बीत जाती हैं तो वापस नहीं लौटती।

Saturday, July 4, 2009

जाने कहां चली जवानी

दुनिया कहां जा रही है,शायद कहीं नहीं।संभव है कि कहीं जा रही हो।लेकिन, यहां रहने वाले कुछ लोगों को लगता है कि वे दुनिया को चला रहे हैं। कुछ को लगता है कि दुनिया उन्हें चला रही है। सब एक दूसरे को अपने से पीछे करने की कोशिश में लगे हैं। एक जुनून है, सबके मन में।कहीं हासिल करने का जुनून,कहीं पास की चीज को बचाने का जुनून।
दुनिया की अंधी दौड़ में जवानी खत्म हो रही है।जवानी का जुनून सिर्फ पाने और बचाने तक सिमट गया है।आज का युवा भी सपने देखता है।पहले का भी देखता था।आने वाला युवा भी सपनों से अलग नहीं हो सकता।फिर सपने बेमानी क्यों लगने हैं। क्या अब जवानी के सपने बूढे होने लगे हैं।क्या जवानी अब दीवानी नहीं रह गई है।कहीं जवानी की परिभाषा सिर्फ पैसा कमाना तो नहीं होती जा रही है।जवानी के सपने, जवानी की दीवानगी, जवानी के हंसी ठहाके न जाने कितनी रफ्तार से गायब हो रहे हैं। फिर भी उम्मीदें कायम हैं।जवानी की दीवनगी कम भले हो।यह खत्म नहीं होनी चाहिए।जहां इसे जाना होगा।

Monday, June 22, 2009

पाक में मस्ती का मौका

आत्मघाती हमलों की पीड़ा से कराह रहे पाकिस्तान के लोगों के लिए कुछ पल खुशियों से भरे आए हैं। 20-20 विश्व कप जीत कर वहां की क्रिकेट टीम ने देशवासियों को आतंकी जख्मों को भुलाने का मौका दिया है। आम पाकिस्तानी खुश है। शायद सोच रहा होगा कि आतंकवाद के जख्म अब न मिलें। लोग मिठाइयां बांट रहे हैं। सड़कों पर डांस करने भी उतरे।
रावलपिंडी हो इस्लामाबाद। लाहौर हो या पेशावर। हजारों की भीड़ सड़क पर उतरी। लगा कि क्रिकेट विश्वकप नहीं कोई जंग जीत गए हों। लेकिन, पाकिस्तानी हुक्मरानों को कौन समझाए। वे तो सिर्फ भारत के साथ खूनी खेलने का दावा करके ही कुर्सी पर बने रहना चाहते हैं। वे बड़े शान से खून और लाश दिखाते हैं।
लाहौर में श्रीलंकाई क्रिकेट पर आतंकवादी हमला हुआ था। उसके बाद पाकिस्तान की छवि रसातल में पहुंच गई थी। क्रिकेट जगत कांप गया था। पाकिस्तानी जमीन क्रिकेट के लिए कलंकित हो गई थी। अब यहां के लोग मानते हैं कि विश्वकप जीतने से उनके देश की छवि जरूर सुधरेगी। सच भी है आतंकवादी कुछ लोग हैं। लेकिन, दुनिया को लगता है कि पूरा पाकिस्तान आतंकवादी है।

Saturday, June 13, 2009

धोनी का घमंड

जवानी में घमंड तो हर किसी को कुछ न होता ही है। लेकिन, सामूहिक फैसलों के समय जोश के साथ दिल का भी कहना मानना होता है। लेकिन, भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी इन दिनों कुछ ज्यादा ही हवा में उड रहे हैं। उन्हें शह मिल रही है भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड की। बोर्ड को लगता है कि धोनी 20-20 विश्वकप जिता देंगे। लेकिन, सुपर एट के पहले मुकाबले में धोनी की सेना धराशायी हो गई। वेस्टइंडीज ने उसे चारों खाने चित्त कर दिया। न ईशांत चले। न दिखा जहीर का तूफान। इरफान और यूसुफ भी नहीं कर सके कमाल।

प्रज्ञान और भज्जी की हिम्मत जवाब दे गई। रोहित शर्मा के बल पर वीरेन्द्र सहवाग की अनदेखी की गई। धोनी को लगा कि सहवाग नहीं भी रहेंगे तो भी कुछ बिगडने वाला नहीं है। रोहित बांग्लादेश, आयरलैंड जैसी टीमों के सामने तो खूब बरसे। लेकिन, जैसे ही वेस्टइंडीज के खिलाडियों की कहर बरपाती गेंदें नजर आईं। उनकी हवा निकल गई। गंभीर तो फिर भी ठीक रहे। सुरेश रैना, धोनी की तो एक न चली।


आईपीएल में सबसे शानदार गेंदबाजी करने वाले आर.पी. सिंह बेंच पर बैठे हैं। स्विंग मास्टर प्रवीण कुमार गेंद थामने का इंतजार कर रहे हैं। जोशीले आलराउंडर रवीन्द्र जडेजा नेट पर ही पसीना बहाकर क्हीझ उतार रहे हैं। लेकिन, मैनेजमेंट में इनका कोई माईबाप नहीं है। विज्ञापन एजेंसियों ने इन तीनों पर पैसा नहीं लगाया है। शायद इसीलिए ये हाथ मल रहे हैं। ईशांत, इरफान, प्रज्ञान, जहीर, रैना अपने नाम के बल पर अंतिम 11 में शामिल हो रहे हैं।

Monday, June 8, 2009

महान रंगकर्मी को अलविदा

महान रंगकर्मी हबीब तनवीर ने भी आखिरी सांस ले ली। वे चले गए। छोड गए अपनी यादें। उन्होंने रंगमंच को दिया। इसे बताने की जरूरत नहीं। सदियां याद रखेंगी कि भारत जैसे देश में हबीब तनवीर जैसा रंगकर्मी समाज को समझाने की कोशिश कितनी सिद्दत से करता रहा। लोगों ने आलोचना की। गालियां भी दी। मंच तोडे गए। फिर भी तनवीर नहीं टूटे। चलते रहे।

लोगों को सिखाते रहे। कुछ ने सीखा। बहुतों ने नहीं सीखा। फिर भी तनवीर का जीवन शायद बेकार नहीं गया। वे महात्मा गांधी बनने नहीं निकले थे। जवाहर लाल नेहरू जैसा भी उन्होंने बनना नहीं चाहा। चाहते तो कुछ और बन जाते। लेकिन, वही बने जो उनकी मूल प्रवृत्ति ने उन्हें बनने दिया।पुरस्कारों की भरमार हबीब तनवीर को वर्ष 1969 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, वर्ष 1983 में पkश्री, वर्ष 1996 में संगीत नाटक अकादमी फेलोशिप और वर्ष 2002 में पk भूषण से नवाजा गया। वे वर्ष 1972 से 1978 तक राज सभा सदस्य भी मनोनिनित किए गए थे।

उनके नाटक "चरण दास चोर" को वर्ष 1982 के अंतरराष्ट्रीय ड्रामा फेस्टिवल में फ्रिंग फ्रस्ट अवार्ड से भी नवाजा गया। जीवन धाराएक सितंबर 1923 को छत्तीसगढ के रायपुर में हाफिज अहमद खान के घर जन्मे। मैट्रिक की पढाई म्युनिस्पल हाई स्कूल रायपुर में की। 1944 में मोरिस कॉलेज नागपुर से बीए किया। अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से एमए की डिग्री ली। 1945 में मुम्बई गए। वहां ऑल इंडिया रेडियो में निर्देशक के रूप में काम किया। यहीं पर रहते हुए हिन्दी सिनेमा में भी कुछ अहम रोल निभाए। मुंबई में रहते हुए ही ब्रिटिश शासनकाल में इप्टा के प्रोग्रेसिव राइटर एसोसिएसशन पीडब्ल्यू से बतौर एक्टर जुडे। अंग्रेजी शासन में भी इप्टा के सदस्य रहे। 1954 में नई दिल्ली का रूख किया। यहां कुददुसिया जैदी के हिन्दुस्तानी थिएटर में बाल थिएटर में योगदान दिया। यहीं रहते हुए कई नाटकों का सृजन किया। यहां उनकी मुलाकात कलाकार एवं निदेशक मोनिका मिश्रा से हुई, जो बाद में शादी में तब्दील हुई। इसी दौरान जामिया मिलिया के छात्रों को लेकर "आगरा बाजार" का लेखन और निर्देशन किया।


भारत में उनका अभिनव प्रयोग काफी सफल रहा। विदेश-देश वर्ष 1955 में हबीब तनवीर इंग्लैंड गए। वहां रायल एकेडमी ऑफ ड्रामेटिक आट्र्स आरएडीए में एक्टिंग और वर्ष 1956 में ब्रिस्टल ओल्ड विक थिएटर स्कूल में निदेशन का काम किया। यहां रहकर वे दो वर्ष तक यूरोप की यात्रा करते हुए विभिन्न नाटकों को नजदीक से देखा। वर्ष 1958 में स्वदेश लौटे। यहां उन्होंने संस्कृत रचना शुद्रका की एक कहानी नाटय रूपांतरण "मिट्टी की गाडी" नाम से किया और छत्तीसगढी लोक कलाकारों के साथ पहला नाटक मंचित किया।


नाटकों की फेहरिस्त


आगरा बाजार

शतरंज के मोहरे

लाला शोहरत राय

मिट्टी की गाडी

गांव के नांव ससुराल, मोर नांव दामाद

चरणदास चोर

रामचरित्रा

कलारिन

पोंगा पंडित

जिस लाहौर नई देखिया

कामदेव का अपना बसंत ऋतु का सपना

जहरीली हवा

राज रक्त


सिनेमा में हबीब राही में खलनायक बने। प्रहार में सहअभिनेता। ब्लैक एंड व्हाइट में चरित्र अभिनेता से मन मोहा। चरणदास चोर में संगीत एवं स्क्रिप्ट पर चलाई कलम। आम आदमी से जुडे रहे। अंधविश्वास व आडंबरों पर प्रहार करते रहे।

Wednesday, June 3, 2009

मुलायम का समाजवाद या परिवारवाद

राहुल गांधी का जादू यूपी में चला तो सपा को भी नया सूझ गया। सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने यूपी सपा की बागडोर बेटे अखिलेश यादव को सौंप दी। इसके पहले सपा वाले कांग्रेस पर परिवारवाद का आरोप जडते थे। अब क्या कहेंगे। शायद यह कहेंगे कि अखिलेश में प्रदेश अध्यक्ष बनने की काबिलियत है। आखिर मुलायम सिंह ने पहलवानी छोड राजनीति में ताकत दिखाई। इतने दिन यहां पसीना बहाए हैं तो विरासत किसी और को सौप नहीं सकते। सबकुछ सीधा-सीधा दिख रहा है।
कांग्रेस ने युवाओं के नाम पर यूपी में अपनी हालत सुधारी है। सपा की हालत फिलहाल कमजोर हुई है। यदि में यूपी में समाजवादी पार्टी कुछ नहीं उखाड सकती तो फिर कहां करेगी राजनीति। युवा मतदाताओं को अखिलेश कितना लुभाएंगे, यह तो समय बताएगा। लेकिन, यह सच लगने लगा है कि सपा यादव खानदान की पार्टी आने वाले कई सालों तक बनी रहेगी। कभी कभार अमर सिंह या संजय दत्त का नाम चमकेगा। अमर सिंह कब तक रहेंगे, कहना आसान नहीं है।

Sunday, May 31, 2009

कमला सूर्या को

कवयित्री कमला सूर्या को नमन। वे भी समाज को जानने-समझने की कोशिश करते-करते हम सब के बीच से हमेशा के लिए चली गई। पचहत्तर साल की जिंदगी में उन्होंने समान से बहुत कुछ लिया। बदले में दिया भी बहुत कुछ। उन्होंने इस्लाम धर्म क्यों स्वीकारा, इसका सही कारण तो वे ही जानती थीं। लेकिन, उनके इस कदम से एहसास होता है कि वे हिंदू धर्म से शायद खुश नहीं थीं। या फिर उन्होंने नजीर पेश करने के लिए ऎसा किया था।
नामचीन मलयालम कवयित्री कमला के निधन पर साहित्यकारों में तो दुख है ही। संस्कृति प्रेमियों और राजनेताओं ने दुख जताया। हालांकि, हिंदी भाषियों से उनकी दूरी कायम रही। उन्होंने अंग्रेजी और मलयालम भाषाओं में ही लेखनी चलायी। मानवीय पक्ष को केन्द्र में रखा। पाठकों को आत्ममंथन के लिए मजबूर किया। हम उन्हें याद इसलिए नहीं करेंगे कि वे बडी साहित्यकार थीं। याद इसलिए भी करेंगे, क्योंकि उनका नजरिया तार्किक

Sunday, March 8, 2009

जीना है जिंदगी

हम सपने बहुत देखते हैं। शायद सभी देखते हैं। पत्रकारिता मे हैं। अचानक नहीं, सोच समझ कर आए हैं। लेकिन, कभी कभी लगता है की ग़लत पेशे मे आ गये। सपने देखते रहते हैं की समाज बदल देंगे। इस उम्मीद पर जिए जा रहे हैं। अब मन की बात आप तक पहुंचानी है। आप भी हमसे बात करते रहें। देखना है की हमारे सपने कब पूरे होते हैं। जिंदगी तो जीनी ही है। ऐसा प्यार किया नही, जिसमे जीने मरने के वादे करता। इसलिए मरने के बारे में कभी सोचा नही। इसका मतलन यह नही की हम प्यार में पड़ना नही चाहते थे। असल बात यह है की कोई मिली ही नही। यह भी मान सकते हैं की किसी को पटाने की योग्यता ही नही थी। लेकिन इन सबके बीच हमें फायदा भी हुआ। हम आराम से जीते रहे। प्यार का चक्कर नही चला तो एक दोस्ती ऐसी हुई, जो यादगार बन गई।

Thursday, February 19, 2009

तालिबान

तालिबानों ने पत्रकार मूसा खान को मौत के घाट उतार दिया। ३० से ज्यादा गोली दागी गई। आख़िर तालिबान ने फ़िर दिखाया की वे तो सिर्फ़ भयानक से भयानक मौत में विशवास करते हैं। असल में तालिबान इन्सान नही कहे जा सकते। उन्हें तो हैवानो से भी भयानक कहा जाना चाहिए। लेकिन हैवान कह देने से भी उनकी हैवानिअत में बदलाव नही आने वाला। तालिबानों को यदि कुत्तों की मौत मारा जाय तो भी कम ही है। कहने का मतलब ये है की तालिबानों को इलाज फिलहाल तो कोई दीखता नही। ऐसे में किया क्या जाय। अपने को दुनिया का मुखिया कहलाने वाला अमरीका तालिबानों को निपटने में लगा है। लेकिन पाकिस्तान सरकार की मिलीभगत से तालिबान मजबूत होते जा रहे हैं। अब अमरीका को भी पाकिस्तान को लेकर अपनी सोच बदलनी ही होगी।

Monday, February 16, 2009

वाह रे पाकिस्तान

पाकिस्तान की माया भी पाकिस्तान ही जाने। कल तक कह रहे थे की तालिबान को निपटाना है। आज कह दिया की तालिबान नियंत्रण के बहार हो गया है। स्वात घाटी में शरियत लागू करने को मंजूरी दे दी। अब किस जुबान से कहोगे की पाकिस्तान भारत से टक्कर लेने के लायक है। मुट्ठी भर तालिबान छाती पर सवार हो कर गोली दाग रहे हैं। भारत का मुकाबला करने के लिए तो न जाने कितने पाकिस्तान को आगे आना होगा। सुधर जाओ पाकिस्तान। वरना ख़ुद ही औकात में आ जाओगे। भारत को तो हाथ भी नही उठाना पड़ेगा।

सब आसान

जवानी के दिनों में सब कुछ आसान लगता है। लगता है कुछ भी कर जायेंगे। जरुरी होता है तय करना। तय हो जाय की क्या करना है तो कुछ न कुछ होता जरुर है। लेकिन जवानी के दिनों में तय करना सबसे मुश्किल कम होता है। शायद इसी लिए युवा लोग बिना सोचे भी बहुत कुछ कर जाते हैं। प्यार करना तो जवानी में सबसे बड़ा नेक काम माना जाता है। कुछ तो प्यार के चक्कर में पागल हो जाते हैं। कुछ पागल प्यार पाकर सुधर जाते हैं। कुछ ऐसे भी होते हैं जो प्यार की खातिर सब कुछ दांव पैर लगा देते हैं। लेकिन सब कुछ दांव पर लगाने वालों को दुनिया पागल कहती है। फ़िर भी प्यार में सब कुछ लुटा देने वालों की कमी नही। पहले भी लुटते रहे हैं। आगे भी लूटेंगे। दुनिया हँसे तो हंसती रहे।

Sunday, February 15, 2009

कहाँ हो

दुनिया बदल रही है। समाज बदल रहा है। लोग बदल रहे हैं। नही बदल रही है तो सिर्फ़ कामगारों की हालत। कामगार पहले भी कमाते थे और खाते थे। अब भी हालत ऐसी ही है। कामगार बीमार पड़ता है तो इलाज के पास नही होते। घर में शादी होती है तो बैंक से लोन लेना होता है। हाँ ये बात अलग है की कामगारों के नाम पर राजनीती करने वाले ऐश कर रहे हैं। कामगार आन्दोलन तो अब बीते ज़माने की बात हो गई है। आन्दोलन होते हैं तो सरकारी कर्मचारिओं की तनख्वाह बढ़ने के लिए। काश असल कामगारों के हित में भी असल आन्दोलन होने लगें। असल कामगारों की पहचान भी होनी चाहिए।

Saturday, February 14, 2009

बाली उमरिया

1३ साल में महोदय बाप बन गये। क्या सच् में घोर कलयुग आ गया है। या तो ये कलयूग है। या फ़िर कोई अजूबा है। १३ साल इस छोरे ने १५ साल की अपनी प्रेमिका को माँ बना दिया। बधाई हो छोरे। इतहास तुझे याद रखेगा।

Thursday, February 12, 2009

भगवान्

भगवन हैं या नही। बहस का विषय रहा है। आगे भी रहेगा। लेकिन भगवान् के नाम पर दुकानदारी मेशा होती रही है। आगे भी होती रहेगी। पता नही भगवान् को ये मालूम है की नही। कम से कम भगवान् क ठेकेदारों तो नही मालूम। मालूम होता तो शायद मन्दिर में पुजारी महिलाओं के जिस्म न निहारते। मस्जिद क मौलवी बुर्के के पीछे छिपी खूबसूरती को देखकर लार न टपकाते। फ़िर भी धर्म क नाम की ठेकेदारी चल रही है। लोग भगवन को निहार रहे हैं। पुजारी और मौलवी लोगों की जेब का मॉल अपनी जेब में भर रहे हैं।

Saturday, February 7, 2009

सीमाओं के पार

जवानी दीवानी होती है। दीवानेपन पर जोर किसी का चलता नही। जवानी में हम किसके दीवाने जायें पता नही। कभी देशप्रेम का दीवानापन असर कर जाता है। कभी किसी की खूबसूरती पर मचल जातें हैं। जवानी में सीमाओं का जोर नही चलता। ............................
फिलहाल हम भी ब्लॉग की दुनिया में आ गए हैं। आप सब से दो चार होते रहेंगे। मन की बात कहते रहेंगे। आप सब से के दिल की बात सुनते रहेंगे।