तेरी आंखों से दूर होकर भी
ऐसा लगता है, उनमें डूबा हूं
अपना अब तक मिलन तो हो न सका,
ये तो पिछले जनम का रिश्ता है,
तुमको देखे बिना न चैन मुझे,
तुमको देखूं भी तो करार नहीं,
मेरी चाहत तुम्हीं हो, पूजा हो,
कौन कहता है, तुमसे प्यार नहीं
कुंवर सलीम खान
ham khud ko samajh rahe hain. shayad isme samay jyada lagaga. ho sakta hai ki samajh na bhi paoon. fir bhi koshish karta rahoonga. karibion ka sath bhi leta rahoonga.
Saturday, January 8, 2011
Friday, January 7, 2011
उजड़ी बस्ती
जब कभी तकसीम कहीं उजाले हुए हैंअंधेरों के हिस्से,
कुछ निवाले हुए हैंनिशां उजड़ी बस्ती के,
आज भी हैं कायम रौनाके वो शहर की सम्हाले हुए हैं।
फुटपाथ हमारी जिंदगी के निशां हुए जाते हैं
देखकर परेशानियां, क्यूं परेशां हुए जाते हैंवे कहते हैं
क्या करते रहे, इतने बरस यहांतेरे सामने के लोग,
कहकशां हुए जाते हैं।
अमर मलंग, कटनी
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