Saturday, January 8, 2011

तेरी आंखों

तेरी आंखों से दूर होकर भी
ऐसा लगता है, उनमें डूबा हूं
अपना अब तक मिलन तो हो न सका,
ये तो पिछले जनम का रिश्ता है,
तुमको देखे बिना न चैन मुझे,
तुमको देखूं भी तो करार नहीं,
मेरी चाहत तुम्हीं हो, पूजा हो,
कौन कहता है, तुमसे प्यार नहीं
कुंवर सलीम खान

Friday, January 7, 2011

उजड़ी बस्ती

जब कभी तकसीम कहीं उजाले हुए हैंअंधेरों के हिस्से,
कुछ निवाले हुए हैंनिशां उजड़ी बस्ती के,
आज भी हैं कायम रौनाके वो शहर की सम्हाले हुए हैं।
फुटपाथ हमारी जिंदगी के निशां हुए जाते हैं
देखकर परेशानियां, क्यूं परेशां हुए जाते हैंवे कहते हैं
क्या करते रहे, इतने बरस यहांतेरे सामने के लोग,
कहकशां हुए जाते हैं।

अमर मलंग, कटनी