Sunday, February 6, 2011









ख़ूबसूरती के तमाम रंग। हेमा सब पर भारी।

Saturday, February 5, 2011











जयपुर साहित्य सम्मलेन के नज़ारे

उन्मादिनी सी कामिनी सी

कौन तुम उन्मादिनी सी कामिनी सी
आज मन मेरे समाती जा रही हो
आज ये अब बोली कहानी चल रही है
धड़कनों में गीत कोई गा रही हो,
प्रकृति का धवल है हर श्रंृगार
नूतनमन को यह भा रहा है
प्यार का सौहाद्र, हर स्वर अबोला
आज यह विभ्रान्त पर छा रहा है
प्रीत के ये शब्द सा ये जगत
विस्तृत प्रणय में ही अब सिमट कर रह गया है
हो रहा आभास पास आती जा रही
आज मने से ये बात कोई कह गया
चाहता तुम पर लिखूं मैं गीत गंगा बने
जो प्रणय की अब ऐसी कहानी चंचल
सरिताओं की मस्तियां छीनकर भरूं मैं
स्वयं उसमें ऐसी रवानी कौन जाने स्वप्न पूरा हो,
न होया टूट जाए तडि़त हीरक हार सा
वेदना की हृदय में ज्वाला धधकती रहे
बिखरा रहूं खंडित मैं किसी उपहार सा।
श्याम मोहन दुबे

Friday, February 4, 2011

प्यार हो जायेगा

प्यार हो जाएगा तुमको भी इजाजत के सिवा
चैन ना पाओगे दीदार की राहत के सिवा
तू अपनी चाहतों में इतनी कशिश पैदा कर
उसे कुछ और ना भाए तेरी चाहत के सिवा
फरेब खा के नहीं आया हूं मयखाने में
और भी जख्म हैं ऐ लोगों मोहब्बत के सिवा
दबाना हो किसी को तो दबाओ अहसान तले
तरीके और भी हैं दुनिया में ताकत के सिवा
उसकी कुछ यादें कुछ अहसास और कुछ सपने
और हम कुछ भी नहीं रखते जरूरत के सिवा
इश्क की आंच रूह तलक आ पहुंची जिस्म में
कुछ भी नहीं रहता हरारत के सिवा
शहरेयार काश दिल भी होता इन हसीनों में
मोहब्बत करनी भी आ जाती नजाकत के सिवा।
शहरेयार