Saturday, October 9, 2010

पढऩे गए थे डॉक्टरी



रितु बचपन में न जाने कहां से टॉय स्टेथिसकोप ले आई थी। वह अक्सर अपनी नानी से इच्छा जताती थी कि वह डॉक्टर बनेगी, मगर नियति को कुछ और ही मंजूर था। डॉक्टर बनना तो दूर, वह ग्रेजुएशन भी नहीं कर पाई। बचपन की इच्छाएं बड़े होकर भी मिट नहीं पाई थीं। नानी का घर मेडिकल कॉलेज के पास था, अत: वह दरवाजे पर खड़ी होकर जूनियर डॉक्टर्स को आते-जाते ध्यान से देखा करती
जबलपुर पिसनहारी की मढिय़ा के निकट रहने वाली 68 साल की माया रजक के लिए रितु एक मात्र सहारा थी। माया के पति का देहांत १२ साल पहले हो चुका था। उन दिनों उसे अपनी छोटी सी नातिन की याद आई और वह उसे लेकर शहर आ गई। दिन गुजरते गए और रितु बड़ी होती गई। वह स्कूल जाने लगी और बारहवीं क्लास के बाद कॉलेज में पढऩे की जिद करने लगी। चूंकि, माया आर्थिक रूप से कमजोर थी, अत: उसने नातिन को पढ़ाई जारी रखने से मना कर दिया। रितु का विद्यानुराग कम होने का नाम नहीं ले रहा था। वह आस-पास मिलने वाले अखबार तलाशती और राष्टï्रीय-अंतरराष्टï्रीय खबरों की जानकारी अपनी नानी को दिया करती। हालांकि, नानी दो जून की रोटी के बारे में ही सोचा करती थी और उसके लिए ये सारी बातें बेवजह लगती थीं। कभी- कभी नानी का यह बर्ताव रितु के लिए असहनीय हो जाया करता था। रितु को ऐसे दोस्त की तलाश थी, जो न केवल उसकी बौद्धिकता का आंकलन करे, बल्कि उसे भी ज्ञान की चार बातों से रूबरू कराए। दिन बीतते गए। रितु का बौद्धिक स्तर बढ़ता गया।मिल गया डॉक्टरएक दिन रितु को उसके सपनों का राजकुमार मिल ही गया। नैनपुर से पढऩे आए संदीप सैयाम ने इस बात को ताड़ लिया कि रितु उसे आते-जाते बड़े ध्यान से देखा करती है। संदीप को जैसे ही यह अहसास हुआ कि21 साल की युवती उस पर मेहरबान है, वह भी रितु से बात करने का बहाना खोजने लगा। कुछ दिनों तक एक दूसरे को देखने का क्रम जारी रहा। संदीप की बेकरारी बढ़ती जा रही थी। एक दिन उसने रितु से बात करने की ठानी और वह कॉलेज से लौटते समय सीधे उसके घर के सामने खड़ा हो गया। संदीप ने रितु से बात करने की रूपरेखा पहले ही बना ली थी। वह रितु के घर के पास दो-तीन मकानों और चाय-पान के ठेलों पर पहुंचा और आस-पास किराए के मकान के बारे में तफ्तीश करने लगा। रितु ने भी इस जाने-पहचाने चेहरे को मोहल्ले में देखा, तो मन ही मन बात करने की तैयाारी कर ली। यह सब पूर्व नियोजित था, अत: संदीप को अभिनय करने में कोई दिक्कत नहीं आई।
शुरू हुआ सिलसिलातीन-चार मकान व दुकानों में फर्जी पड़ताल करने के बाद संदीप, रितु के मकान की ओर बढ़ा। संदीप को अपने मकान की तरफ आते देख रितु की धड़कनें बढऩे लगीं। वह अवाक थी और मन ही मन सोच रही थी कि इस पढऩे-लिखने वाले नौजवान को इस मोहल्ले में क्या काम पड़ गया? वह इन विचारों में मग्न थी। मैडम यहां कहीं किराए से मकान मिलेगा? अचानक आई भारी आवाज से वह भौंचक रह गई। उसने घबराहट में सिर हिलाकर जवाब दिया। रितु का उत्तर नहीं में था। संदीप को जैसे इस उत्तर का पूर्वानुमान था। उसने बिना किसी घबराहट के कहा मैं नैनपुर का रहने वाला हूं और मेडिकल कॉलेज का फस्र्ट ईयर का स्टूडेंट हूं। हॉस्टल में आए दिन झगड़े होते हैं और रैगिंग का अलग भय सताता है। इस कारण रहने के लिए रूम ढूंढ़ रहा हूं। रितु ने डरे-सहमे स्वर में कहा कि आप पीछे वाली गली में पड़ताल कर लें, वहां कुछ पढऩे वाले छात्र रहते हैं। इतना सुनते ही संदीप के चेहरे में मुस्कुराहट आ गई और वह थैंक्यू कहकर आगे बढ़ गया। उसने पीछे मुड़कर देखा, तो रितु के चेहरा खुशी के मारे लाल था। वह संदीप की ओर देखकर मुस्कुराई। संदीप समझ चुका था कि अगली मुलाकात उसकी प्रेम कहानी का पुख्ता पड़ाव साबित होगी। दूसरी मुलाकातबिना समय जाया किए संदीप दूसरे दिन शाम को फिर उसी गली में पहुंच गया, जहां वह अपना दिल हार आया था। रितु भी मानो पलक पांवड़े बिछाए संदीप का इंतजार कर रही थी। रितु का डॉक्टर बनने का सपना चकनाचूर हो चुका था, पर एक डॉक्टर दोस्त की ख्वाहिश जरूर जन्म ले चुकी थी। संदीप सीधे रितु के घर पहुंचा और बिना किसी झिझक के बोला आपने जो पता बताया था, वहां अब मकान मालिक रहने आ गए हैं। वे पहले इलाहाबाद में रेलवे की नौकरी करते थे। रिटायर होने के बाद उनका पूरा परिवार जबलपुर शिफ्ट हो चुका है। रितु ने कहा भीतर आइए, बैठकर बात करते हैं। संदीप खुशी-खुशी छोटे से मकान में दखिल हो गया। बातों का सिलसिला घंटे भर चला और अगली मुलाकात की तारीख भी मुकर्रर हो गई।पढ़ाई दरकिनारसंदीप पढऩे लिखने में होशियार था पर रितु के प्यार के चक्कर में उसने अपनी पढ़ाई चौपट कर ली। वह रितु से आए दिन मिलता। इतने पर भी उसे संतोष नहीं था। उसने मेडिकल कॉलेज के पास रहने के लिए घर ढूंढ़ा और कुछ ही दिनों में नानी को मना कर रितु को अपने साथ ले आया। उसने रितु से शादी करने का वादा कर लिया था। उसने रितु की नानी को रुपए देने भी शुरू कर दिए। इससे नानी को भी विश्वास हो गया था कि अब उसकी विपन्नता यह लड़का दूर कर देगा। अब नानी भी रितु को उसके साथ जाने से नहीं रोकती थी।छलिया निकला संदीपसंदीप अब निश्चिंत हो चुका था। रितु उसके घर आ चुकी थी और वह दोनों पति-पत्नी की तरह रहने लगे थे। संदीप के दोस्तों ने उसकी इन गतिविधियों के लिए उसे आगाह किया, पर वह नहीं माना। कुछ ही दिनों बाद रितु ने अपने प्रेगनेंट होने की जानकारी संदीप को दी। संदीप यह बात सुनकर हतप्रभ रह गया। यह बात संदीप को नागवार गुजरी। वह रितु से अबॉरशन कराने कहता रहा, वहीं रितु भी जिद में थी कि वह ऐसा नहीं करेगी। रितु केवल एक बात पर अडिग थी कि संदीप उसके साथ सात फेरे लगा ले। संदीप ने रितु को मनाने की भरसक कोशिश की, पर वह नहीं मानी। तलाश रही पुलिससंदीप के इरादे रितु भांप चुकी थी। उसे लगने लगा था कि संदीप उसके मामले में कतई गंभीर नहीं है। एक दिन उसने संदीप के सामने एक शर्त रखी। रितु ने कहा कि या तो वह चुपचाप उसके साथ शादी कर ले, अन्यथा वह कोर्ट चली जाएगी। संदीप इस बात से डर गया। उसे लगा कि अब उसका कैरियर दांव पर लग सकता है। सात महीने तक रितु का शारीरिक शोषण करने के बाद वैसे भी संदीप इस जिंदगी से ऊब चुका था। उस रात संदीप को डर सताता रहा कि पुलिस उसे कॉलेज के सामने जलील करते हुए ले जाएगी। सुबह उठकर रितु ने देखा कि संदीप घर पर नहीं है। उसने हडबड़ाकर घर की तलाशी की, पर संदीप नजर नहीं आया। वह घबरा गई और रोते-रोते नानी के पास जा पहुंची। नानी ने रितु को दिलासा दी और थाने जाने को कहा। रितु बिना किसी देरी के गढ़ा थाना पहुंची। थाना में संदीप के खिलाफ धारा 376 का मामला दर्ज हुआ और संदीप की तलाश जारी है।कहां गया संदीप?मेधावी छात्र रहे संदीप को प्रेम रोग ने ऐसा जकड़ा कि उसका अच्छा-खास कैरियर तबाह हो गया। रितु की धमकी के बाद गायब हुए संदीप को आज तक ढूंढ़ा नहीं जा सका है। पुलिस ने संदीप के दोस्तों सहित मेडिकल कॉलेज प्रबंधन से भी सम्पर्क साधा, लेकिन उसका पता नहीं चला। दूसरी ओर अपना सब कुछ गंवाने वाली रितु , अपनी नानी के साथ रहकर आंसू बहा रही है। रितु ने कभी डॉक्टर बनने का सपना देखा था। वह सपना पूरा नहीं हुआ, तो नादानी में शॉर्टकट अपनाकर डॉक्टर की जीवनसंगिनी बनना चाहा। युवावस्था के जोश और नादानी ने दोनों का भविष्य चौपट कर दिया। पूरे घटनाक्रम के लिए जहां रितु और संदीप मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं, वहीं दोनों के परिजन भी अपनी जिम्मेदारियों से मुंह नहीं मोड़ सकते। जवान नातिन को संभालने और सही रास्ता दिखाने के बजाय, नानी माया ने रितु को न केवल संदीप से घुलने-मिलने दिया, बल्कि उसके साथ रहने की अनुमति भी दे दी। दूसरी ओर संदीप के माता-पिता ने एक बार भी यह जानने की जहमत नहीं उठाई कि घर से दूर रहकर उनका बेटा क्या गुल खिला रहा है। संदीप के हॉस्टल छोडऩे, रूम में रहने और नए-नए खर्चों के नाम पर रुपए मांगते रहने के बावजूद उन्होंने तफ्तीश करने की जरूरत नहीं समझी।सपने चकनाचूरमां-बाप बड़ी उम्मीद के साथ बच्चों को पढ़ाते हैं। बच्चे मन लगाकर पढ़ें, इसके लिए न जाने क्या-क्या जतन किए जाते हैं, पर घर से दूर पहुंचकर पढऩे वाले कुछ छात्र-छात्रा बजाय, किताबों में दिल लगाने के दीगर कामों में उलझ जाते हैं। जवानी के जोश में युवा ऐसे कदम उठा लेते हैं, जिससे मां-बाप के सपनों के साथ उनका कैरियर भी चौपट हो जाता है। ऐसे में पछताने के अलावा कुछ हाथ नहीं आता। इस मामले में रेखा और रंजीत के साथ कुछ ऐसा ही हुआ।
├ तरुण मिश्र जबलपुर