Thursday, September 26, 2013

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Thursday, April 14, 2011

मेहरानगढ़

अंग्रेज भारत आते हैं, राजस्थान जाने की कोशिश जरूर करते हैं। राजस्थानी लोकसंगीत से उनका ख़ास लगाव हो जाता है। हालाँकि भारत की संस्कृति उनके लिए रोमांचकारी ही होती है। अंग्रेज भी भारतियों के अजूबे लगते हैं।

Thursday, March 31, 2011

शिल्पा की सेक्स अपील

शिल्पा शेट्टी फिल्मों में तो शायद नहीं दिख रही हैं। राज कुंद्रा से शादी करने के बाद शायद उनका ज्यादा ध्यान आईपीएल की राजस्थान रॉयल टीम के प्रमोशन में है। शिल्पा का ग्लैमर कम से कम इतना तो कर ही सकता है कि बूढ़े शेन वार्न को उत्साहित कर दे। साथ में उनके खिलाड़ी भी जोश में आ सकते हैं। लेकिन, शिल्पा को यह भी समझना होगा कि आखिर बूढ़े घोड़े पर कब तक दांव लगाएंगी। राज कुंद्रा तो शिल्पा की सेक्स अपील में बावरे हो हो गए हैं। उन्हें आईपीएल का सौदा कितना भी नुकसान पहुंचाए, लेकिन वे उफ नहीं करेंगे। आखिर शिल्पा जैसी पत्नी रूठ गई, तो दूसरी कहां से खोजेंगे। शायद इस आईपीएल के बाद शिल्पा राज कुंद्रा को अकल आएगी, क्योंकि इस बार भी उनकी टीम में खास सितारे नजर नहीं आ रहे हैं।

Friday, March 25, 2011

बेरंग हुआ गुलाल

महंगाई में रंग उड़ गए अब तो बेरंग हुआ गुलाल
सरकारी होली खेल के मंत्री हो रहे लालम लाल
जनता लेके खड़ी कटोरा अफसर भैया मालामाल
पानी की अब कमी बहुत है कैसे खेलूं रंग गुलाल
आंखों का पानी भर गया हो गया ऐसा हाल बेहाल
आतंकी खेले खून की होली दिन महीने पूरा साल
कैसा ये जेहाद है भैया मासूमों को करे हलाल
खून से रंगे हाथ हैं इनके दिल में इनके नहीं मलाल
दहेज की होली खेले ससुरा
बहू बन गई जी का काल
सासू भी है बड़ी सयानी उसने जीना किया मुहाल
पत्नी रोए खून के आंसू पति हस रहा दे के ताल
सात जन्म का बंधन मारो सात दिनों में हुआ बेहाल
प्यार का रंग फीका पड़ गया प्यारा लगे मुफ्त का माल
काले रंग से देश रंग गया चेहरे को क्या करना लाल
काला धन या दाल में काला काली हो गई सारी दाल
होली की क्या बात करू मैं संसद में कीचड़ रहे उछाल
चहरे के रंगत उड़ी हुई है कही पे सूखा कही अकाल
रंग भेद से लड़ता गांधी रंगों में भी है जंजाल
प्रेम का रंग सबसे पक्का लगे सो वो होए निहाल।
आलोक तिवारी, कटनी

Sunday, February 6, 2011









ख़ूबसूरती के तमाम रंग। हेमा सब पर भारी।

Saturday, February 5, 2011











जयपुर साहित्य सम्मलेन के नज़ारे

उन्मादिनी सी कामिनी सी

कौन तुम उन्मादिनी सी कामिनी सी
आज मन मेरे समाती जा रही हो
आज ये अब बोली कहानी चल रही है
धड़कनों में गीत कोई गा रही हो,
प्रकृति का धवल है हर श्रंृगार
नूतनमन को यह भा रहा है
प्यार का सौहाद्र, हर स्वर अबोला
आज यह विभ्रान्त पर छा रहा है
प्रीत के ये शब्द सा ये जगत
विस्तृत प्रणय में ही अब सिमट कर रह गया है
हो रहा आभास पास आती जा रही
आज मने से ये बात कोई कह गया
चाहता तुम पर लिखूं मैं गीत गंगा बने
जो प्रणय की अब ऐसी कहानी चंचल
सरिताओं की मस्तियां छीनकर भरूं मैं
स्वयं उसमें ऐसी रवानी कौन जाने स्वप्न पूरा हो,
न होया टूट जाए तडि़त हीरक हार सा
वेदना की हृदय में ज्वाला धधकती रहे
बिखरा रहूं खंडित मैं किसी उपहार सा।
श्याम मोहन दुबे