कवयित्री कमला सूर्या को नमन। वे भी समाज को जानने-समझने की कोशिश करते-करते हम सब के बीच से हमेशा के लिए चली गई। पचहत्तर साल की जिंदगी में उन्होंने समान से बहुत कुछ लिया। बदले में दिया भी बहुत कुछ। उन्होंने इस्लाम धर्म क्यों स्वीकारा, इसका सही कारण तो वे ही जानती थीं। लेकिन, उनके इस कदम से एहसास होता है कि वे हिंदू धर्म से शायद खुश नहीं थीं। या फिर उन्होंने नजीर पेश करने के लिए ऎसा किया था।
नामचीन मलयालम कवयित्री कमला के निधन पर साहित्यकारों में तो दुख है ही। संस्कृति प्रेमियों और राजनेताओं ने दुख जताया। हालांकि, हिंदी भाषियों से उनकी दूरी कायम रही। उन्होंने अंग्रेजी और मलयालम भाषाओं में ही लेखनी चलायी। मानवीय पक्ष को केन्द्र में रखा। पाठकों को आत्ममंथन के लिए मजबूर किया। हम उन्हें याद इसलिए नहीं करेंगे कि वे बडी साहित्यकार थीं। याद इसलिए भी करेंगे, क्योंकि उनका नजरिया तार्किक
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