पिता बनने का सुख तो आज की भी पीढ़ी चाहती है। लेकिन, इसके लिए वह जीवनसाथी पर किसी तरह का दबाव बनाना चाहती। न ही कैरियर दांव पर लगाने के बारे में सोचती है।कुछ ऎसा ही सामाजिकता के बारे में कह सकते हैं। पैसा कमाने की भूख तो लोगों में बढ़ती गई है। शायद यह समय की मांग भी है। क्योंकि, अब जरूरतें बदल गई हैं, बढ़ भी गई हैं। फिर भी समाज की परिकल्पना में विश्वास रखने वाले खुश हैं। उन्हें सुकून इस बात का है कि आज भी लोग खुद को समाज की नजर में इज्जतार बनाए रखना चाहते हैं।
यह बात भी सामने आ चुकी है कि अधिकांश लोग सफल पति और पिता बनना चाहते हैं।यह भी सच है कि आज युवा मनमर्जी की जिंदगी जीना चाहता है। खूब पैसा कमाना चाहता ह। जिंदगी में किसी तरह का बंधन पसंद नहीं करता। पीढियों से चले आ रहे संस्कार उन्हें अच्छे नहीं लगते। समाज को ठेंगे पर रखते हैं। लेकिन, जैसे ही शादी के बंधन में बंधते हैं। सोच में कई तरह के बदलाव आ जाते हैं। उन्हें इस बात की चिंता कहीं न कहीं से जरूर होने लगती है कि समाज वाले क्या कहेंगे। पैसे कमाने के साथ ही यह सोच भी बनती है कि पति और पिता की जिम्मेदारी कैसे निभाई जाए।
ऎसे में कहा जा सकता है कि पिता और पति की जिम्मेदारी का गहरा एहसास समाज की मान्यताओं से निकलता है। यह जरूर कह सकते हैं कि मान्यताओं को खारिज करने वाले भी बढ़ रहे हैं। लेकिन, ऎसे लोगों की संख्या कम है। आने वाले समय में भी इसमें बहुत ज्यादा बदलाव के संकेत नहीं दिख रहे। क्योंकि, दुनिया के अधिकांश देशो में सामाजिक बदलाव घूम—फिरकर फिर से पुराने ढर्रे पर चलने लगता है। कम बातें ही ऎसी होती हैं, जो बीत जाती हैं तो वापस नहीं लौटती।
सटीक बात कही आपने!!
ReplyDeleteआभार/मगलभावानाओ सहित
हे प्रभु यह तेरापन्थ
मुम्बई टाईगर