ham khud ko samajh rahe hain. shayad isme samay jyada lagaga. ho sakta hai ki samajh na bhi paoon. fir bhi koshish karta rahoonga. karibion ka sath bhi leta rahoonga.
Monday, November 1, 2010
समाजवाद
उत्तर प्रदेश इस समय संभवत: पूरे देश से कई मायनों में अलग हो गया है। यहां की राजनीति देश की राजनीति से अलग हो गई है। यहां गरीबी की बाढ़ है। बेरोजगारी का चरम है। अपराध का सागर हिलोरें मार रहा है। बलात्कार ऐसे हो रहे हैं, जैसे हर कहीं सुहागरात मनाई जा रही है। अच्छी बात एक ही दिखती है कि दलितों की मसीहा मायावती कह तूती बोल रही है। वे मदमस्त हाथी की तरह चलती हैं। मुलायम जैसे कुत्ते भौंकते रहते हैं। माया की आड़ में पुलिस वाले किसी की भी बहन-बेटी के साथ सुहागरात मना लेते हैं। एक अच्छी बात और हो रही है। यूपी में समाजवाद आ गया है। वहां अब किसी जाति या धर्म विशेष का महत्व सिर्फ दलितों के आगे-पीछे घूमता है। ब्राह्मण मायावती के पैर ऐसे छूता है, जैसे कभी दलित पंडित जी के पैर छूता था। ठाकुर साहबों की हालत ऐसी हो गई है कि कुछ समझ नहीं पा रहे हैं। राजनाथ का पता नहीं। राजा भैया कुंडा के कुंड में लगता है छुपे बैठे हैं। अमर सिंह को मुलायम ने ऐसी औकात दिखाई कि राजनीति के पर्दे से गायब हो गए। मायावती के कारिंदों को यह मतलब नहीं होता कि बंदा किस जाति, धर्म का है। उन्हें सिर्फ वसूली से मतलब रह गया है। इसे भी तो 'समाजवादÓ ही कहेंगे न?
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment