Saturday, February 5, 2011

उन्मादिनी सी कामिनी सी

कौन तुम उन्मादिनी सी कामिनी सी
आज मन मेरे समाती जा रही हो
आज ये अब बोली कहानी चल रही है
धड़कनों में गीत कोई गा रही हो,
प्रकृति का धवल है हर श्रंृगार
नूतनमन को यह भा रहा है
प्यार का सौहाद्र, हर स्वर अबोला
आज यह विभ्रान्त पर छा रहा है
प्रीत के ये शब्द सा ये जगत
विस्तृत प्रणय में ही अब सिमट कर रह गया है
हो रहा आभास पास आती जा रही
आज मने से ये बात कोई कह गया
चाहता तुम पर लिखूं मैं गीत गंगा बने
जो प्रणय की अब ऐसी कहानी चंचल
सरिताओं की मस्तियां छीनकर भरूं मैं
स्वयं उसमें ऐसी रवानी कौन जाने स्वप्न पूरा हो,
न होया टूट जाए तडि़त हीरक हार सा
वेदना की हृदय में ज्वाला धधकती रहे
बिखरा रहूं खंडित मैं किसी उपहार सा।
श्याम मोहन दुबे

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