Friday, March 25, 2011

बेरंग हुआ गुलाल

महंगाई में रंग उड़ गए अब तो बेरंग हुआ गुलाल
सरकारी होली खेल के मंत्री हो रहे लालम लाल
जनता लेके खड़ी कटोरा अफसर भैया मालामाल
पानी की अब कमी बहुत है कैसे खेलूं रंग गुलाल
आंखों का पानी भर गया हो गया ऐसा हाल बेहाल
आतंकी खेले खून की होली दिन महीने पूरा साल
कैसा ये जेहाद है भैया मासूमों को करे हलाल
खून से रंगे हाथ हैं इनके दिल में इनके नहीं मलाल
दहेज की होली खेले ससुरा
बहू बन गई जी का काल
सासू भी है बड़ी सयानी उसने जीना किया मुहाल
पत्नी रोए खून के आंसू पति हस रहा दे के ताल
सात जन्म का बंधन मारो सात दिनों में हुआ बेहाल
प्यार का रंग फीका पड़ गया प्यारा लगे मुफ्त का माल
काले रंग से देश रंग गया चेहरे को क्या करना लाल
काला धन या दाल में काला काली हो गई सारी दाल
होली की क्या बात करू मैं संसद में कीचड़ रहे उछाल
चहरे के रंगत उड़ी हुई है कही पे सूखा कही अकाल
रंग भेद से लड़ता गांधी रंगों में भी है जंजाल
प्रेम का रंग सबसे पक्का लगे सो वो होए निहाल।
आलोक तिवारी, कटनी

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