कुछ निवाले हुए हैंनिशां उजड़ी बस्ती के,
आज भी हैं कायम रौनाके वो शहर की सम्हाले हुए हैं।
फुटपाथ हमारी जिंदगी के निशां हुए जाते हैं
देखकर परेशानियां, क्यूं परेशां हुए जाते हैंवे कहते हैं
क्या करते रहे, इतने बरस यहांतेरे सामने के लोग,
कहकशां हुए जाते हैं।
अमर मलंग, कटनी
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