तालिबानों ने पत्रकार मूसा खान को मौत के घाट उतार दिया। ३० से ज्यादा गोली दागी गई। आख़िर तालिबान ने फ़िर दिखाया की वे तो सिर्फ़ भयानक से भयानक मौत में विशवास करते हैं। असल में तालिबान इन्सान नही कहे जा सकते। उन्हें तो हैवानो से भी भयानक कहा जाना चाहिए। लेकिन हैवान कह देने से भी उनकी हैवानिअत में बदलाव नही आने वाला। तालिबानों को यदि कुत्तों की मौत मारा जाय तो भी कम ही है। कहने का मतलब ये है की तालिबानों को इलाज फिलहाल तो कोई दीखता नही। ऐसे में किया क्या जाय। अपने को दुनिया का मुखिया कहलाने वाला अमरीका तालिबानों को निपटने में लगा है। लेकिन पाकिस्तान सरकार की मिलीभगत से तालिबान मजबूत होते जा रहे हैं। अब अमरीका को भी पाकिस्तान को लेकर अपनी सोच बदलनी ही होगी।
ham khud ko samajh rahe hain. shayad isme samay jyada lagaga. ho sakta hai ki samajh na bhi paoon. fir bhi koshish karta rahoonga. karibion ka sath bhi leta rahoonga.
Thursday, February 19, 2009
Monday, February 16, 2009
वाह रे पाकिस्तान
पाकिस्तान की माया भी पाकिस्तान ही जाने। कल तक कह रहे थे की तालिबान को निपटाना है। आज कह दिया की तालिबान नियंत्रण के बहार हो गया है। स्वात घाटी में शरियत लागू करने को मंजूरी दे दी। अब किस जुबान से कहोगे की पाकिस्तान भारत से टक्कर लेने के लायक है। मुट्ठी भर तालिबान छाती पर सवार हो कर गोली दाग रहे हैं। भारत का मुकाबला करने के लिए तो न जाने कितने पाकिस्तान को आगे आना होगा। सुधर जाओ पाकिस्तान। वरना ख़ुद ही औकात में आ जाओगे। भारत को तो हाथ भी नही उठाना पड़ेगा।
सब आसान
जवानी के दिनों में सब कुछ आसान लगता है। लगता है कुछ भी कर जायेंगे। जरुरी होता है तय करना। तय हो जाय की क्या करना है तो कुछ न कुछ होता जरुर है। लेकिन जवानी के दिनों में तय करना सबसे मुश्किल कम होता है। शायद इसी लिए युवा लोग बिना सोचे भी बहुत कुछ कर जाते हैं। प्यार करना तो जवानी में सबसे बड़ा नेक काम माना जाता है। कुछ तो प्यार के चक्कर में पागल हो जाते हैं। कुछ पागल प्यार पाकर सुधर जाते हैं। कुछ ऐसे भी होते हैं जो प्यार की खातिर सब कुछ दांव पैर लगा देते हैं। लेकिन सब कुछ दांव पर लगाने वालों को दुनिया पागल कहती है। फ़िर भी प्यार में सब कुछ लुटा देने वालों की कमी नही। पहले भी लुटते रहे हैं। आगे भी लूटेंगे। दुनिया हँसे तो हंसती रहे।
Sunday, February 15, 2009
कहाँ हो
दुनिया बदल रही है। समाज बदल रहा है। लोग बदल रहे हैं। नही बदल रही है तो सिर्फ़ कामगारों की हालत। कामगार पहले भी कमाते थे और खाते थे। अब भी हालत ऐसी ही है। कामगार बीमार पड़ता है तो इलाज के पास नही होते। घर में शादी होती है तो बैंक से लोन लेना होता है। हाँ ये बात अलग है की कामगारों के नाम पर राजनीती करने वाले ऐश कर रहे हैं। कामगार आन्दोलन तो अब बीते ज़माने की बात हो गई है। आन्दोलन होते हैं तो सरकारी कर्मचारिओं की तनख्वाह बढ़ने के लिए। काश असल कामगारों के हित में भी असल आन्दोलन होने लगें। असल कामगारों की पहचान भी होनी चाहिए।
Saturday, February 14, 2009
बाली उमरिया
Thursday, February 12, 2009
भगवान्
भगवन हैं या नही। बहस का विषय रहा है। आगे भी रहेगा। लेकिन भगवान् के नाम पर दुकानदारी हमेशा होती रही है। आगे भी होती रहेगी। पता नही भगवान् को ये मालूम है की नही। कम से कम भगवान् क ठेकेदारों तो नही मालूम। मालूम होता तो शायद मन्दिर में पुजारी महिलाओं के जिस्म न निहारते। मस्जिद क मौलवी बुर्के के पीछे छिपी खूबसूरती को देखकर लार न टपकाते। फ़िर भी धर्म क नाम की ठेकेदारी चल रही है। लोग भगवन को निहार रहे हैं। पुजारी और मौलवी लोगों की जेब का मॉल अपनी जेब में भर रहे हैं।
Saturday, February 7, 2009
सीमाओं के पार
जवानी दीवानी होती है। दीवानेपन पर जोर किसी का चलता नही। जवानी में हम किसके दीवाने जायें पता नही। कभी देशप्रेम का दीवानापन असर कर जाता है। कभी किसी की खूबसूरती पर मचल जातें हैं। जवानी में सीमाओं का जोर नही चलता। ............................
फिलहाल हम भी ब्लॉग की दुनिया में आ गए हैं। आप सब से दो चार होते रहेंगे। मन की बात कहते रहेंगे। आप सब से के दिल की बात सुनते रहेंगे।
फिलहाल हम भी ब्लॉग की दुनिया में आ गए हैं। आप सब से दो चार होते रहेंगे। मन की बात कहते रहेंगे। आप सब से के दिल की बात सुनते रहेंगे।
Subscribe to:
Posts (Atom)