भगवन हैं या नही। बहस का विषय रहा है। आगे भी रहेगा। लेकिन भगवान् के नाम पर दुकानदारी
हमेशा होती रही है। आगे भी होती रहेगी। पता नही भगवान् को ये मालूम है की नही। कम से कम भगवान् क ठेकेदारों तो नही मालूम। मालूम होता तो शायद मन्दिर में पुजारी महिलाओं के जिस्म न निहारते। मस्जिद क मौलवी बुर्के के पीछे छिपी खूबसूरती को देखकर लार न टपकाते। फ़िर भी धर्म क नाम की ठेकेदारी चल रही है। लोग भगवन को निहार रहे हैं। पुजारी और मौलवी लोगों की जेब का मॉल अपनी जेब में भर रहे हैं।
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