Tuesday, November 3, 2009

करीना का प्यार

करीना कपूर ने शाहिद कपूर को क्यों छोड़ा। सैफ अली खान से गलबहियां किए क्यों घूम रही हैं। क्या शाहिद ने अभी तक किसी से प्यार किया। क्या करीना सच में सैफ से प्यार करती हैं। क्या सैफ सही मायने में करीना को दिल दे बैठे हैं। इन सवालों के जवाब तब तक पूछे जाते रहेंगे, जब तक करीना और सैफ की शादी नहीं हो जाती। करीना शाहिद के साथ रात-रात भर अकेली घूम चुकी हैं। सैफ तो अमृता के साथ शादी करके बच्चे पैदा कर चुके हैं। करीना ने शाहिद को छोड़ दिया।

सैफ ने अमृता से नाता तोड़ लिया। यह सबको पता है कि सैफ ने अमृता से प्रेम विवाह किया था। उसी तरह करीना और शाहिद आपस में प्यार ही करते थे। करीना कपूर खानदान की चिराग हैं। सैफ पटौदी घराने के वारिस हैं। लेकिन, प्यार के मामले में दोनों ने धोखा दिया। क्योंकि, करीना से शाहिद अब भी प्यार करने की बात करते हैं। अमृता भी सैफ को छोड़ने के बाद किसी के साथ घूमना पसंद नहीं किया। असल मे सैफ को लग रहा है कि उनके हाथ खूबसूरती का खजाना लगा है। जबकि, करीना को लगता है कि सैफ बांके करारे जवान और अनुभवी मर्द हैं। करीना को यह पता है कि सैफ के पास पैसा भी खूब है।


जबकि, शाहिद कपूर को कम से कम बच्चे पैदा करने का अनुभव तो नहीं है। वे जवां मर्द की दिखते भी नहीं है। उनके चेहरे से मर्दानगी की जगह मासूमियत टपकटती है। वे छैल छबीले बन भी नहीं सकते। उनके पास पैसा भी सैफ की तुलना में कम है। असल में शाहिद इमोशनल हैं। उन्होंने करीना को सच्चे दिल से प्यार किया। ऎसा उनके हाव भाव देखने से अंदाजा लगाया जा सकता है। वे करीना की आंखों में खोना चाहते थे। वे करीना की सेक्स अपील से मतलब नहीं रखते थे। शायद यहीं पर वे गच्चा खा गए। करीना बिंदास हैं। वे प्रोफेशनल हैं।


उनको पता है कि शादी के बाद बॉलीवुड में कोई पूछने वाला नहीं है। यही करिश्मा और अभिषेक के साथ हुआ था। हालांकि, करिश्मा भी अभिषेक से शादी करना चाहती थीं। लेकिन, उनकी मां बबिता कपूर ने ऎहसास कराया कि जितना पैसा संजय के पास है, उतनी हैसियत अभिषेक की नहीं है। इसी के चलते करिश्मा ने अभिषेक को छोड़ दिया। बबिता ने बॉलीवुड में बहुत कुछ हासिल करने का सपना देखा था। वे पैसा भी खूब कमाना चाहती थीं। लेकिन, कपूर खानदान की मर्यादाओं में उनकी चल नहीं पाई। जब बेटियां जवान हुई तो उन्हें खुली छूट दे दी। पिता रणधीर कपूर सीधे हैं। सिर्फ वेट एंड वॉच पर हैं।

Sunday, November 1, 2009

दुष्यंत की याद में

संचार मंत्रालय ने गीतकार दुष्यंत कुमार पर डाक टिकट जारी किया है। यह सुनना मीठा लग सकता है। लेकिन, कड़वी बात यह रही कि मंत्रालय ने इसे बेहद गोपनीय रखा। फिर भी सुखदायक है कि दुष्यंत जैसे लोग भी सरकारी महकमे को याद आ जाते हैं। नहीं तो किसी को फुरसत कहां है। भ्रष्टाचार के ज्वालामुखी पर खड़ा देश कहां जाएगा, इसका अंदाजा लगाना आसान नहीं है। लेकिन, यह तय है कि दुष्यंत जैसों की यादें रोमांचित करती रहेंगी। कुछ करने का जज्बा देती रहेंगी। शायद अच्छा बनने की राह भी दिखाती रहेंगी। संभव है सरकारी महकमा भी कुछ सुधर जाए। नहीं भी सुधरेगा तो क्या हुआ। देश तो चलता रहा है। आगे भी चलता रहेगा।

दुष्यंत की पंक्तियां जवानी में ज्यादा अच्छी लगती हैं। जवानी सपनों की दुनिया में रहती है। इसीलिए सबकुछ रूमानी लगता है। दुष्यंत कुमार स्कूल या साहित्यिक मत के हिमायती नहीं थे। वे एक ऎसी कविता शैली की तलाश कर रहे थे जो स्वाभाविक हो। काव्य के प्रति उनके इसी दृष्टिकोण ने उनमें सामान्य जीवन के यथार्थ के प्रति विश्वास पैदा किया। 70 के दशक के में दुष्यंत ने गजल को नई जिंदगी दी। दिल को छूने वाली सामाजिक सच्चाइयों को सामने रखा। उनकी शैली ने लोगों पर जादू किया। वे खूब पढ़े गए। पढ़े जा रहे हैं। आगे भी उनके दीवाने कम नहीं होंगे। उनका संग्रह साये में धूप ने तो धमाल ही कर दिया। उनका दर्द हर शब्दों में बयां होता था।॥यहां दरख्तों के साये में धूप लगती है, चलो यहां से चलें और उम्रभर के लिए। वे क्रांतिकारी भी थे। संवेदनशील भी। मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही, हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए।


उनकी ये पंक्तियां भी रोमांचित जरूर करती हैं


सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं, मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।मत कहो आकाश में कोहरा घना है, यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है।दोस्तों, अब मंच पर सुविधा नहीं है, आजकल नैपथ्य में संभावना है। यह पहाड़ी पांव क्या चढ़ते, इरादों ने चढ़ी है, कल दरीचे ही बनेंगे द्वार, अब तो पथ यही है।एक चिनगारी कहीं से ढूंढ लाओ दोस्तों, इस दीये में तेल से भीगी हुई बाती तो है।अब तो इस तालाब का पानी बदल दो, ये कंमल के फूल कुम्हलाने लगे हैं।ये सारा जिस्म झुककर बोझ से दुहरा हुआ होगा, मैं सजदे में नहीं था आपको धोखा हुआ होगा।पक गई हैं आदतें बातों से सर होंगी नहीं, कोई हंगामा करो ऎसे गुजर होगी नहीं। यह लड़ाई, जो कि अपने आपसे मैंने लड़ी है, यह घुटन, यह यातना, केवल किताबों में पढ़ी है।कहां तो तय था चिरागां हर एक घर के लिए, कहां चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए।गिड़गिड़ाने का यहां कोई असर होता नहीं, पेट भरकर गालियां दो, आह भरकर बद्दुआ।