Tuesday, August 11, 2009

राखी की खूबसूरती

राखी सावंत जवान हैं। खूबसूरत शायद नहीं हैं। वे खुद भी कहती हैं कि मैं तो सेक्सी हूं। सेक्सी होने और खूबसूरत होने का अंतर शायद जवानी में ही पता चलता है। लेकिन, खूबसूरती की परिभाषा राखी शायद समझ भी नहीं सकती। उन्हें समझाया भी नहीं जा सकता। जो खूबसूरत होते हैं। उन्हें बताने की जरूरत नहीं होती। वे भीड़ में अलग ही दिखते हैं। राखी का चेहरा ऎसा है कि न तो वे लड़की लगती हैं। न ही वे महिलाओं जैसी नजर आती हैं। अच्छी प्रेमिका के गुण तो उनमें झलकते नहीं। अच्छी बीवी बनना वे कब सीखेंगी, पता नहीं।
हम उनकी बुराई नहीं कर रहे। हम तो दिल की कह रहे हैं। राखी यदि खूबसूरत हैं तो गायत्री देवी कैसी थीं। राखी यदि सेक्सी हैं तो नरगिस कैसी थीं।लेकिन, राखी को कहना पड़ता है कि वे सेक्सी हैं। सेक्सी अपील उनके किस अंग में हैं। इसके लिए भी उन्हें अंग प्रदर्शन करना पड़ता है। बोलती तो राखी बिंदास ही है। इसी लिए वे अपने को बिंदास बाला भी कहलवाना पसंद करती हैं। अभिषेक अवस्थी से प्यार करती थीं। उनके साथ रहती भी थीं।

अब एनआरआई इलेस के साथ शादी की चर्च चल रही है। बिन ब्याही मां बनने की भी बात हो रही है। लेकिन, उनकी खूबसूरती और सेक्स अपील अभी न जाने कितने को दीवाना बनाएगी। कहने का मतलब यह है कि राखी सेक्स अपील और खूबसूरती को सरे बाजार बेचना जानती हैं। खरीदने वाले इतने ज्यादा हैं कि मोल तो लग ही जाता है। मोल लगाने वाले भी निराश नहीं होते। राखी बाजार को जानती हैं। बाजार राखी को जानता है। दोनों एक दूसरे को बेवकूफ समझ रहे हैं। बेवकूफ बना भी रहे हैं।

Thursday, August 6, 2009

इंडिया में प्लेब्वॉय

वयस्कों की मशहूर पत्रिका प्लेब्वॉय के चहेते खुश हो सकते हैं। इसको बेचने वाले अब भारत में अपना बड़ा बाजार बनाना चाहते हैं। पत्रिका समूह इस ब्रांड के जूते चप्पल और अन्य सामान भी बेचेंगे। उम्मीद की जा सकती है कि प्लेब्वॉय ब्रांड भारत में खूब हिट होगा। जवानी दीवानी की कहावत कहीं और सही हो या न हो, भारत में तो खरी उतरती है।
यहां छुप—छुप कर जवानी की बारात जैसी फिल्में खूब देखी जाती हैं। ऎसे में नंग धडंग तस्वीरें छाप कर प्लेब्वॉय वाले यहां खूब नाम कमा सकते हैं।यह जरूर है कि प्लेब्वॉय से भी ज्यादा बोल्ड तस्वीरें भारत के पत्र पत्रिकाओं में छपती रही हैं। लेकिन, प्लब्वॉय का आकर्षण यहां के लोगों को ज्यादा खींचेगा। इसका मुख्यालय शिकागो में है। भारत में पुरूषों के लिए इत्र बेचने की शुरूआत तो इसने कर दी है। महिलाओं से जुड़े उत्पाद भी आने में देर नहीं लगने वाली। सवाल यह है कि भारत में इस तरह के ब्रांड को हिट कराने के लिए किसका सहारा लिया जाएगा।

पामेला एंडरसन जैसी सेक्स अपील किसमें खोजेंगे।अब भारतीय समाज में सीता, पार्वती की तस्वीरें कमरों में सजारे का जमाना रहा नहीं। या तो सचिन दिखेंगे या फिर मैडोना। सानिया मिर्जा दिखेगी या फिर एंजेलिना जोली। किसी भी देश का समाज तेजी से भागता है तो वह दूसरे देश की नकल करता है। इस चक्कर में उसे अपने में कमी दिखती है। सामने वाले में सबकुछ अच्छा ही झलकता है। कहने का मतलब यह नहीं है कि बदलाव गलत है। असल मुद्दा यह है कि अंधी दौड़ का बदलाव पीछे ही धकेलता है।

Sunday, August 2, 2009

राणा चंद्र सिंह

पाकिस्तान में शाही शानो-शौकत के प्रतीक अमरकोट राजवंश के राजा राणा चंद्र सिंह सोढ़ा ने दुनिया को अलविदा कह दिया। 79 साल तक शाही जिंदगी जी। पाकिस्तान में हिंदुओं का परचम बुलंद करने की कोशिश करते रहे। लेकिन, 2004 में लकवा का शिकार हुएद्ध फिर भी शाही अंदाज बरकरार रहा। अब देखना है कि चंद्र के बाद उनके बड़े बेटे हमीर सिंह विरासत को किस तरह संभलते हैं।


राणा चंद्र सिंह के निधन से पाकिस्तान का पूरा हिंदू समाज शोक ग्रस्त हुआ होगा। राजनीतिक बंधन मजबूरी हो सकती है। लेकिन, हिंदू बहुल जिलों अमरकोट, मीरपुर खास और मिट्ठी में कारोबार बंद रखे गए। इससे उनकी लोकप्रियता का अंदाजा हो जाता है। उन्होंने शानौ शौकत की जिंदगी जीने के बाद भी आम लोगों को अपने से जोड़े रखना जरूरी समझा।चंद्र सिंह का जन्म सिंध के अमरकोट के गांव राणा जागीर में 1930 में हुआ। वहीं शुरूआती पढ़ाई की।


इसके बाद भारत के देहरादून से स्नातक की डिग्री ली। 24 साल की उम्र में ही पाकिस्तान की राजनीति में आ गए। शायद राजनीति में आना उनकी मजबूरी थी। रसूख बनाए रखने के लिए राजनीति पाकिस्तान में भी रजवाड़ों के लिए जरूरी हो गई है।राणा चंद्र सिंह की शादी बीकानेर के राजा रावत तेज सिंह की पुत्री सुभद्रा कुमारी से हुई। सुभद्रा की बहन भारत के पूर्व प्रधानमंत्री वी।पी. सिंह की पत्नी थीं। पाकिस्तान के राजनीतिक गलियारों में राणा चंद्र सिंह का खासा रसूख रहा। वे लगातार आठ बार संसद के सदस्य बने। कई बार केंद्रीय मंत्री भी रहे।


सिंध की राजनीति में उनका खास स्थान और प्रभाव था। वे पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो करीबी मित्र थे। चंद्र सिंह का नाम उस समय चर्चा में आए जब वे उस तत्कालीन प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का हिस्सा बने। 1990 के चुनाव में उन्होंने राष्ट्रीय एसेंबली की सीट से जीत हासिल की। नवाज शरीफ की सरकार का समर्थन किया। चंद्र सिंह ने कभी भारत और पाकिस्तान की कूटनीति में टांग नहीं अड़ाई। वे वहां रहे। अपना रसूख कायम करने की कोशिश करते रहे।