Monday, December 13, 2010

निगहबां बदल दीजिए

फिर वही शहर है आशियां बदल दीजिये
फिर वही बशर है निगहबां बदल दीजिए
कर दिया महंगाई ने जीने का मजा किरकिरा
फिर वही नजर है मेहरबां बदल दीजिए
खाई थीं मां के हाथों जो चाहत भरी रोटियां
फिर वही असर है, जुबां बदल दीजिए
रोशनी में रोशन था पहले भी ये चमन
फिर वही सहर है बागवां बदल दीजिए
ख्वाबों की ताबीर कभी हकीकत संवार देगी
फिर वही सफर है कारवां बदल दीजिए
रहा नहीं यकीं अब बातों का उनकी
फिर वही लहर है, दास्तां बदल

अमर मलंग

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