Saturday, July 4, 2009

जाने कहां चली जवानी

दुनिया कहां जा रही है,शायद कहीं नहीं।संभव है कि कहीं जा रही हो।लेकिन, यहां रहने वाले कुछ लोगों को लगता है कि वे दुनिया को चला रहे हैं। कुछ को लगता है कि दुनिया उन्हें चला रही है। सब एक दूसरे को अपने से पीछे करने की कोशिश में लगे हैं। एक जुनून है, सबके मन में।कहीं हासिल करने का जुनून,कहीं पास की चीज को बचाने का जुनून।
दुनिया की अंधी दौड़ में जवानी खत्म हो रही है।जवानी का जुनून सिर्फ पाने और बचाने तक सिमट गया है।आज का युवा भी सपने देखता है।पहले का भी देखता था।आने वाला युवा भी सपनों से अलग नहीं हो सकता।फिर सपने बेमानी क्यों लगने हैं। क्या अब जवानी के सपने बूढे होने लगे हैं।क्या जवानी अब दीवानी नहीं रह गई है।कहीं जवानी की परिभाषा सिर्फ पैसा कमाना तो नहीं होती जा रही है।जवानी के सपने, जवानी की दीवानगी, जवानी के हंसी ठहाके न जाने कितनी रफ्तार से गायब हो रहे हैं। फिर भी उम्मीदें कायम हैं।जवानी की दीवनगी कम भले हो।यह खत्म नहीं होनी चाहिए।जहां इसे जाना होगा।

No comments:

Post a Comment