Sunday, August 2, 2009

राणा चंद्र सिंह

पाकिस्तान में शाही शानो-शौकत के प्रतीक अमरकोट राजवंश के राजा राणा चंद्र सिंह सोढ़ा ने दुनिया को अलविदा कह दिया। 79 साल तक शाही जिंदगी जी। पाकिस्तान में हिंदुओं का परचम बुलंद करने की कोशिश करते रहे। लेकिन, 2004 में लकवा का शिकार हुएद्ध फिर भी शाही अंदाज बरकरार रहा। अब देखना है कि चंद्र के बाद उनके बड़े बेटे हमीर सिंह विरासत को किस तरह संभलते हैं।


राणा चंद्र सिंह के निधन से पाकिस्तान का पूरा हिंदू समाज शोक ग्रस्त हुआ होगा। राजनीतिक बंधन मजबूरी हो सकती है। लेकिन, हिंदू बहुल जिलों अमरकोट, मीरपुर खास और मिट्ठी में कारोबार बंद रखे गए। इससे उनकी लोकप्रियता का अंदाजा हो जाता है। उन्होंने शानौ शौकत की जिंदगी जीने के बाद भी आम लोगों को अपने से जोड़े रखना जरूरी समझा।चंद्र सिंह का जन्म सिंध के अमरकोट के गांव राणा जागीर में 1930 में हुआ। वहीं शुरूआती पढ़ाई की।


इसके बाद भारत के देहरादून से स्नातक की डिग्री ली। 24 साल की उम्र में ही पाकिस्तान की राजनीति में आ गए। शायद राजनीति में आना उनकी मजबूरी थी। रसूख बनाए रखने के लिए राजनीति पाकिस्तान में भी रजवाड़ों के लिए जरूरी हो गई है।राणा चंद्र सिंह की शादी बीकानेर के राजा रावत तेज सिंह की पुत्री सुभद्रा कुमारी से हुई। सुभद्रा की बहन भारत के पूर्व प्रधानमंत्री वी।पी. सिंह की पत्नी थीं। पाकिस्तान के राजनीतिक गलियारों में राणा चंद्र सिंह का खासा रसूख रहा। वे लगातार आठ बार संसद के सदस्य बने। कई बार केंद्रीय मंत्री भी रहे।


सिंध की राजनीति में उनका खास स्थान और प्रभाव था। वे पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो करीबी मित्र थे। चंद्र सिंह का नाम उस समय चर्चा में आए जब वे उस तत्कालीन प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का हिस्सा बने। 1990 के चुनाव में उन्होंने राष्ट्रीय एसेंबली की सीट से जीत हासिल की। नवाज शरीफ की सरकार का समर्थन किया। चंद्र सिंह ने कभी भारत और पाकिस्तान की कूटनीति में टांग नहीं अड़ाई। वे वहां रहे। अपना रसूख कायम करने की कोशिश करते रहे।

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